Friday, March 28, 2008

चलो चलें मधुशाला

मधुशाला का नाम आते ही हरिवंश रे बच्चन की काव्यग्रंथ की स्मृति आज भी मानस पटल को छूती है ,मगर मैं आज बात कर रहा हूँ गुजरात के मधुशाला की जहाँ कानूनी तौर पर मधुशाला की बात करना आपको ग़लत भी लग सकता है अगर आप कानून का पालन करने वाले भारतीय नागरिकों मैं से एक हैं तो , मगर गाँधी के प्रदेश मैं मधुशाला अपने पूरे शबाब पर है ,जितना नशा लोगों को हरिवंश रे बच्चन की मधुशाला को पढ़कर नही हुआ उतने नसेड़ी गुजरात मैं मधुशाला के गुणगान करते घूम रहें हैं, उन्हें शायद यह भी पता नही होगा की हरिवंश रे बच्चन कौन थे या उनका मधुशाला से क्या लेना देना ,मगर जो भी हो गुजरात की मधुशाला ने ना जाने कितने घर मैं दिवाली की रौशनी जला रखी है, यहाँ के ऊपर निचे तक के पुलिसिया और राजनेता लोगों के घर का चूल्हा मधुशाला के कारण जलता हे ,,जी हाँ इसमे हर्ज ही क्या है ? कानून लोगों का पेट नही भरता , यह मेरा मानना नही गुजरात के कई पुलिस अधिकारी का मानना है ,,एक बार का जिक्र करता हूँ जब मैं पत्रकारिता करता था तब मेरी बरोडा के पुलिस आयुक्त से बात हुई इस संबंध में तो उन्होंने मुझे कहा हम भी शराब पीते हैं और तुम भी इसमे कानून कुछ नही कर सकता , मैं उस पुलिस आयुक्त का नाम लेना नही चाहूँगा क्यूंकि वो एक नेक इंसान हैं और उन्होंने बिना दंभ के यह बात कही थी ,जब उन्होंने यह बात कही और मैं जब मधुशाला के गुनगान गाते लोगों को देखता हूँ तो यकीं नही होता गुजरात मैं शराब पर पाबन्दी है ,, पाबन्दी सिर्फ कागजों पर ,,क्यूंकि आखिर पुलिस वाले भी इंसान हैं ,उनका गला भी सुख़ जाता हे और फिर मधुशाला का मोह वो केसे त्याग सकते हैं? मगर जनाब आप ललचायें ना क्यूंकि शराब तो मिल जायेगी यहाँ पर मगर कानून के रखवाले इस फिराक में भी बेठे रहते हैं की कब आप कानून तोडे और आपकी जेबें ढीली हों, आखिर पुलिस के अधिकारी और राजनेताओं को भी जीने हक है आप की शराब न छिनी गयी उनकी बड़ी बड़ी पार्टियों में शराब का ठेका कौन उठाएगा ????????

Thursday, March 27, 2008

चक दे का बुखार, कहाँ खो गया हॉकी ,,,,,,

शायद हम अगर आज के नौजवानों से पूछे की भारत का राष्ट्रीय खेल कौन सा है तो एक ही आवाज बड़े बुलंद स्वर मैं उठेगा टीम इंडिया यानि धोनी एंड कंपनी यहाँ इंडिया तो सुनायी देगा आपको मगर हमारा राष्ट्रीय खेल का नाम शायद ही युवा मानस पटल को छु ,यह विडंबना कुछ इस कदर हॉकी के साथ जुड़ गयी है की राष्ट्रीय खेल को लेकरबनी चक दे इंडिया ने जोरदार धूम मचाई जैसे की यह हमारा राष्ट्रीय गान हो मगर जिस विषय को लेकर यह फ़िल्म बनाई गयी वो विषय तो न जाने कब का विसर सा गया ,आज चक दे इंडिया क्रिकेट के ग्लेमर को और भी चकाचोंध कर रहा है ,चक दे के कबीर खान अपनी हिरोइन देपिका पदुकोने कई साथ क्रिकेट के गलियारों मैं तो नजर आते हैं मगर उनके पास न तो इतनी फुरसत है और ना उन्हे इसमे कोई ऐसा तत्व नज़र आता है जिसके सहारे वो अपनी हिट फिल्मो की लिस्ट मैं कोई और इजाफा कर सकें हाँ फायदा उन्हे नज़र आता है धोनी एंड कंपनी की टीम मैं जो उन्हे प्रसिध्ही भी दे सकती है और पैसा भी तभी तो उन्होने क्रिकेट के नए अवतार मैं काफी पैसा लगाया,यह किसी खेल को नीचा दिखाने का प्रयास नही है मगर शायद राष्ट्र से जुड़े राष्ट्रीय खेल की भी सुध लेने की जरुरत है क्यूंकि आज लोग हॉकी कई जादूगर ध्यानचंद का नाम भी भूल गए हैं जबकि वो अजय जडेजा को भी प्रेम से टीवी पर निहारते हैं जिनपर मैच फिक्सिंग का आरोप लग चुका है ,एक तरफ़ क्रिकेट के खिलाड़ी पांच सितारा होटल मैं ठहरते हैं वोहीं राष्ट्रीय खेल के रखवालों को धर्मशाला मैं ठहराया जाता है ,,यह किसी खेल के साथ सौतेला व्यव्हार का नमूना नही तो और क्या है?? कबीर खान ही नही हम सब को हॉकी के लिए चक दे इंडिया कहना होगा ,,सिर्फ़ हॉकी के नही यह राष्ट्रीय सम्मान की बात ,और एक कबीर खान नही बल्कि पुरी टीम कबीर खान हॉकी के स्वर्णिम काल को लौटा सकते हैं ,,हम मैं से आज कितने लोगों को पता है की हम ओलंपिक मैं कितनी बार हॉकी के खेल मैं स्वर्ण पदक पा चुके हैं?? हाँ मगर इतना जरुर याद है की सिर्फ़ एक बार क्रिकेट मैं विश्व विजेता बन पाएं हैं ......तो एक बार हॉकी के लिए भी बोल दें चक दे इंडिया............................