Sunday, April 13, 2008

कल की ही बात है !

कल ऑफिस की सीढियाँ उतरते समय कॉलेज की वो पहली सीढ़ी अनायास ही याद आ गयी ! स्कूल के बाद कॉलेज के दिन स्वर्णिम माने जाते हैं और आज वो यादें ही जीवन की पूंजी बन गयी हैं !कई साल बीत गए कॉलेज गए हुए मगर यूं ही लगता है जैसे कल की ही बात हो !कल अचानक ही वहाँ जाने का मन कर गया ,हुआ यूं की कल बहुत पुराने दोस्तों का जमावड़ा हुआ और इच्छा हो गयी की चलो एक बार कॉलेज चला जाए जहाँ हमने ढेर सारी मस्तियां की थी ! वो सीढियाँ जहाँ हम लेक्चर बंक करके दिन भर बेठे रहते थे और शायद घर से भी प्यारी जगह थी उस वक्त वो हमारे लिए ! वो जगह देखकर ऐसा लगा जैसे हम कल तक तो अपनी जिन्दगी यहीं गुजारते थे ,खेर वो वक्त अब काफी पीछे चला गया !हम मैं सी काफी दोस्तों के पेट की परिधि अपनी सीमा को लांघकर बाहर आ चुकी है और कितने के सर पर बाल अपनी छाप छोड़कर अलविदा कह रहे हैं !मगर इस दिल का क्या करें जो कभी भी हकीक़त स्वीकार करने को राजी नही होता ! जब कॉलेज पहुंचे तो ऐसा लगा जैसे अब यहाँ काफी छोटे बच्चे आते हैं मगर यह भूल गए वो हमे इसलिए छोटे नज़र आ रहे हैं की हमे यहाँ छोड कर गए हुए ७ या ८ साल हो गए हैं ! हॉस्टल के वो रूम अब भी याद आते हैं और रात रात भर वहाँ दोस्तों के साथ गप्पे मारकर चोरी छुपे घर जाना आज भी अच्छा लगता है ! और ऐसा नही की आज कुछ बदल गया है ,कल भी तीन बजे रात को घर पहुंचे और नाराज घर वालों के डर से रात घर के बाहर गार्डन मैं सो कर बितानी पड़ी ! खेर हम चार दोस्तों का हाल भी कुछ ऐसा ही था ! दोस्ती मैं यूं लगता है जैसे हमारी बात का सिलसिला कभी नही ख़तम होगा और घर वालों को यूँ लगता है जैसे यह रात भर क्या बात करते हैं ! खेर यह सब यूँ ही चलता रहेगा और हम इस भाग दोड वाली जिंदगी से खुशी चुराते रहेंगे !कल की बात करते करते मैं मुद्दे से अलग हो गया था बात चल रही थी कॉलेज हॉस्टल की जहाँ हमने अपना काफी समय बिताया और हॉस्टल के बहार एक पंडित की चाय की दुकान हुआ करती थी जो आज भी वोहीं है और वो हमारे एक दोस्त का इंतजार कर रहा है जो चाय की उधारी छोड़ कर गया! तो दोस्तों अगर हमारा वो दोस्त आपको मिल जाये तो उसे याद दिला देना की पंडित चाय के पैसे मांग रहा था !!!!!!!

Thursday, April 3, 2008

रेल की पटरियाँ नशे का शिकार

भारतीय रेल हिंदुस्तान की जीवन रेखा मानी जाती है , मगर भारतीय रेल की इन्ही पटरियों पर हिंदुस्तान का भविष्य नशे की लत मैं गुमराह हो रहा है ,रेल की पटरियां यूं तो देश को जोड़ती है मगर अब यह जिन्दगी और मौत के बिच की एक कड़ी भी बन गई है ,,,जी हाँ भारतीय रेल्वे लालू जी की अगुयायी मैं रोज नए शिखर को छु रही है और देश का बचपन यहीं पटरियो के बीच नशे का शिकार होकर जिंदगी को हर रोज मार रहा है , हम जब भी रेल्वे स्टेशन से गुजरते हैं तो उन बच्चो को नजर अंदाज कर देते हैं जिनका घर परिवार सिर्फ रेलवे प्लात्फोर्म तक ही सीमित है ,इन बच्चो की उम्र लगभग ३ साल से १० साल तक की होती है और पहली नजर मैं हमें यूँ लगता है जैसे यह सिर्फ दो वक़्त की रोजी रोटी के लिए भीख मांगते हैं मगर हम इनकी जिन्दगी मैं अगर झांके तब पता चलेगा इनकी मज़बूरी दो वक़्त की रोटी नहीं बल्कि नशा है और नशा भी ऐसा जो जवानी की देहलीज पर कदम रखने से पहले ही इनकी जिन्दगी कर ख़त्म चूका होता है, एक ऐसा नशा जो आम लोगों मैं ना तो प्रचलित है न लोग ज्यादा इस और ध्यान देना मुनासिब समझते हैं , और फिर इस युग मैं जब इन पटरियों पर बुलेट ट्रेन दोडाने की योजना बन रही है तो भला हमारे पास इतनी फुरसत कहाँ से निकलेगी की हम इन पटरियों पर घसीटती मौत को देख सकें ,, जीन बच्चो की उम्र किताबों से पढ़ने की है वो उपनी उँगलियों से पेंसिल से लिखने के बजाय उनका इस्तेमाल नशे की चुस्की लेने को कर रहे हैं , यह बच्चे रोज सुबह निकल पड़ते हैं गाड़ियों मैं भीख मांगने और शाम ढले यह रोटी ढूंढने नहीं जाते बल्कि सफ़ेद स्याही और स्पिरिट लेकत मिलाते हैं और दिन भर उसे चूसते रहते हैं यूँ ही इनकी जिन्दगी बीत जाती है और यह मौत के करीब पहुँचते जाते हैं , सरकार इन बच्चो के भले के लिए करोडों खर्च करती है मगर इन बच्चो के हक पर भी हमारी कई तथाकथित स्वंसेविं संस्त्थाएं समाज सेवा के नाम पर इन मासूम बच्चो के हक पर भी डाका डालती हैं ,इनके भले के नाम पर एक बार इन्हें पांच सितारा होटल मैं खाना खिलाया जाता है और फिर साल भर वहाँ खीची गयी फोटो का प्रदर्शन करके यह समाजसेवक साल भर अपनी रोटियां सेंकते हैं और खुद की चाँदी काटते हैं ,,तो हम इन रेल का विकास तो जरुर करें मगर इन मासूम बच्चो की जिन्दगी की भी सुध लें क्यूंकि विकास जिन्दगी के लिए है और इन नन्हें बच्चो की जिन्दगी विकास से कहीं बढ़कर है ....................