Monday, May 5, 2008

ओछी राजनीती और गन्दी जुबान """"""

राज ठाकरे ने एक ऐसी बहस छेड़ दी जो भारत जैसे लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है ,कौन है यह राज ठाकरे???यह राज ठाकरे वोही है जो अब तक शिव सेना के परचम के तले हिंदुत्व का मसीहा होने का दावा करता था और आज अपने आपको शिव सेना से अलग करने के बाद अपने लिए राजनितिक जमीं धुंध रहा हे ,,उसे एहसास हे की बिना लोगों को भावनाओ मैं फंसा कर उसकी राजनीती की दुकान चलने वाली नहीं हे ,सो उसने प्रदेश वाद का जहर उगलना शुरू कर दिया ,,शिव सेना के लिए यह कोई नई बात नहीं हे ,,अवसरवाद की राजनीती मैं माहिर बाल ठाकरे ने वारिस मैं अपने परिवार और पार्टी के कार्यकर्ताओं को सिर्फ जहर ही बांटा हे ,शिव सेना और बल ठाकरे का इतिहास किसी से छिपा नहीं हे, उन्हें समय समय पर अपना चोला बदलने की आदत हे ,फिर आज यह बहस क्यूँ की राज ठाकरे जहर उगल रहें हैं ???यह शिव सेना और ठाकरे परिवार की पुरानी आदत हे ,राजनीती को इस निचले स्तर तक ले जाने के जिम्मेदार सिर्फ बाल ठाकरे नहीं हैं बल्कि सभी पार्टियाँ अपने हिसाब से अवसर वादी हो जाते हैं, और अपने फायदे के हिसाब से भारतीय समाज को बाँटते हे ,,फिर हम सिर्फ राज ठाकरे को गाली क्यूँ दे रहें हैं ???वहाँ की कांग्रेस और n.c.p. सरकार को भी डर हे अगर उन्होने राज ठाकरे के खिलाफ कार्यवाही की तो मराठी वोट उनके विरुद्ध हो जायंगे,,इस सब के बिच भारतीय संविधान का उस वेश्या की तरह चिर हरण हो रहा हे जो अपने हाल पर सिर्फ आंसू बहा सकती हे ,राजनीती के इस चक्र्य व्यूह मैं पिस रहा हे वो आम मजदुर जो दो वक़्त की रोटी कमाने आया हे ,और उसका मकसद सिर्फ अपने परिवार का भरण पोषण करना है , खून पसीना बहा कर वो जीवन को घसीट रहा हे ,इनसे न तो लालू को फर्क पड़ने वाला हे और न ही मुलायम को और न ही कांग्रेस पार्टी को, यह गठजोड़ की राजनीती के दौर मैं सब दुर्योधन अगर आपको एक ही थाली में खाते नजर आयें तो हेरान मत होइएगा ,,क्यूंकि इनका धर्म और इनका इमान सिर्फ सत्ता के लिए है ,और जहाँ तक राज ठाकरे की बात हे तो उसने यह साबित कर दिया की वो न तो किसी धर्म का हे न प्रदेश का और न ही किसी देश का क्यूंकि जिस देश की मिट्टी का कर्ज हे उसपर उसी के हिस्से करने चाहता हे ,,मगर उसे याद रखना चाहिए की अब तक हमारे देश मैं जयचंद तो बहुत हुए मगर हिंदुस्तान का परचम आज भी आसमान मैं लहरा रहा हे ,और जरा हम सभी सोचे मुम्बई मराठियों का ,गुजरात गुजरातियों का ,पंजाब पंजाबियों का तो फिर भारत किसका ?????????

Friday, May 2, 2008

आरक्षण का राक्षस समाज को भस्म कर जायेगा ??????

आजाद भारत के बुद्धजीवियों को यूँ लगा था की जातिवाद का दीमक हमारे समाज को खोखला कर रहा है और यह उस समय के हिसाब से ठीक भी था,और इसलिए कई पिछडी जातियों को नौकरी और शिक्षा मैं आरक्षण की सुविधा दी गयी और सामाजिक न्याय का नारा बुलंद हुआ ,,तब से लेकर आज ६ दशक बीत गए हिंदुस्तान की तस्वीर बदल गयी मगर जिन लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान लाया गया था न तो उनकी तक़दीर बदली न उनकी किस्मत की स्याह तस्वीर, फायदा हुआ जरुर मगर सिर्फ उनलोगों को जिन्होंने सामाजिक न्याय का नारा बुलंद किया था,दलित राजनीती के प्रतिनिधि अब सत्ता का स्वाद चख चुके हैं, दलित अब एक इंसान के बजाय महज एक वोट बैंक बन कर रह गया है , आखिर सत्ता के गलियारों में राजनीती राजनेताओं के जरुरत के हिसाब से तय होती है ,,,आज होड़ इस बात की लगती है की दलितों का मसीहा कौन ,बाबा भीमराव अम्बेडकर का वारिस कौन ,, सामाजिक न्याय का जब नारा बुलंद हुआ था तब यह एक आन्दोलन था मगर इसे नया रूप दिया पूर्व प्रधानमंत्री व.प्र.सिंह ने जब मंडल आयोग की सिफारिश लागु की गयी और उन्होने कोई कसर नहीं छोडी इसका राजनेतिक फयेदा उठाने मैं ,,मगर उसके बाद आजाद भारत के युवा दिलों मैं जातिवाद की भावना सुलग पड़ी और उस आग मैं अब तक न जाने कितने होनहार बच्चों सुलग गए मगर राजनेताओं की चमडी और भी मोटी होती गयी और अगडे और पिछडों के मन में दूरियां बढ़ती गयीं ,,मायावती सरीखे मुख्यमंत्री दलित राजनीती की ही देन हैं ,,जो प्रतिनिधि तो हैं समाज के सबसे पिछडे तबके की मगर उन्हें अपने आप को सोने से तुलवाने का बहुत शोख हे ,,उनके महलों की दीवारों की चकाचोंध उन्हें यह एहसास ही नहीं दिलाती की वो सामाजिक न्याय के आन्दोलन को चला रही हैं ,,आरक्षण के कारन कई लोगों को फायदा हुआ हे जैसे मेरे घर के बगल में एक मीना जी रहतें हैं आरक्षण के वरदान के कारन अधिकारी तक की पदुन्नती पाकर निवृत हुए ,उनके बड़े लड़के को कस्टम विभाग मैं अधिकारी की नौकरी मिल गयी और आज वो भी मलाई काट रहा है छोटा लड़का भी नौकरी प्राप्त कर चूका हे ,,इन लोगों की खासियत बताऊँ आपको की बड़ी मुश्किल से घसीट कर अपनी पढाई पूरी कर पाए जहाँ आरक्षण के कारन उन्हें प्रवेश मिला था ,,खेर यह आदिवासी दलित परिवार अब करोड़ पति हैं ,इनसे पूछिये यह बतायेंगे आपको आरक्षण के फायेदे या फिर मायावती ,मुलायम या लालू जैसे नेता आपको दलितों के सच्चे हमदर्द नज़र आयेंगे ,,मगर आरक्षण से उस आदिवासी और दलित का अभी पाला ही नहीं पड़ा जिसके लिए यह सब माथापची की गयी ,,वो आज भी दो वक़्त की रोटी जुटाने की जुगत मैं लगा है ,,,,,मैं एक राजपूत माध्यम वर्र्गीय परिवार से हूँ मैंने अपने परिवार के कई बच्चों के मुंह से सुना क्यूँ उन्हें प्राथमिकता दी जाती है जिनके सिर्फ ३९ प्रतिशत हैं उनके मुकाबले जब वो ८५ प्रतिशत से ज्यादा नंबर लेकर परीक्षा मैं उत्तीर्ण होते हैं ,,यह सब इसलिए क्यूंकि उनके भविष्य मैं अगर कोई सबसे बड़ा बाधक है तो वो है जातीयता ,,और एही भावना उनके मन को और कुंठित करती है और इस से जातिवाद का दानव और विकराल रूप धारण करता जा रहा है ,,,,