Thursday, April 3, 2008

रेल की पटरियाँ नशे का शिकार

भारतीय रेल हिंदुस्तान की जीवन रेखा मानी जाती है , मगर भारतीय रेल की इन्ही पटरियों पर हिंदुस्तान का भविष्य नशे की लत मैं गुमराह हो रहा है ,रेल की पटरियां यूं तो देश को जोड़ती है मगर अब यह जिन्दगी और मौत के बिच की एक कड़ी भी बन गई है ,,,जी हाँ भारतीय रेल्वे लालू जी की अगुयायी मैं रोज नए शिखर को छु रही है और देश का बचपन यहीं पटरियो के बीच नशे का शिकार होकर जिंदगी को हर रोज मार रहा है , हम जब भी रेल्वे स्टेशन से गुजरते हैं तो उन बच्चो को नजर अंदाज कर देते हैं जिनका घर परिवार सिर्फ रेलवे प्लात्फोर्म तक ही सीमित है ,इन बच्चो की उम्र लगभग ३ साल से १० साल तक की होती है और पहली नजर मैं हमें यूँ लगता है जैसे यह सिर्फ दो वक़्त की रोजी रोटी के लिए भीख मांगते हैं मगर हम इनकी जिन्दगी मैं अगर झांके तब पता चलेगा इनकी मज़बूरी दो वक़्त की रोटी नहीं बल्कि नशा है और नशा भी ऐसा जो जवानी की देहलीज पर कदम रखने से पहले ही इनकी जिन्दगी कर ख़त्म चूका होता है, एक ऐसा नशा जो आम लोगों मैं ना तो प्रचलित है न लोग ज्यादा इस और ध्यान देना मुनासिब समझते हैं , और फिर इस युग मैं जब इन पटरियों पर बुलेट ट्रेन दोडाने की योजना बन रही है तो भला हमारे पास इतनी फुरसत कहाँ से निकलेगी की हम इन पटरियों पर घसीटती मौत को देख सकें ,, जीन बच्चो की उम्र किताबों से पढ़ने की है वो उपनी उँगलियों से पेंसिल से लिखने के बजाय उनका इस्तेमाल नशे की चुस्की लेने को कर रहे हैं , यह बच्चे रोज सुबह निकल पड़ते हैं गाड़ियों मैं भीख मांगने और शाम ढले यह रोटी ढूंढने नहीं जाते बल्कि सफ़ेद स्याही और स्पिरिट लेकत मिलाते हैं और दिन भर उसे चूसते रहते हैं यूँ ही इनकी जिन्दगी बीत जाती है और यह मौत के करीब पहुँचते जाते हैं , सरकार इन बच्चो के भले के लिए करोडों खर्च करती है मगर इन बच्चो के हक पर भी हमारी कई तथाकथित स्वंसेविं संस्त्थाएं समाज सेवा के नाम पर इन मासूम बच्चो के हक पर भी डाका डालती हैं ,इनके भले के नाम पर एक बार इन्हें पांच सितारा होटल मैं खाना खिलाया जाता है और फिर साल भर वहाँ खीची गयी फोटो का प्रदर्शन करके यह समाजसेवक साल भर अपनी रोटियां सेंकते हैं और खुद की चाँदी काटते हैं ,,तो हम इन रेल का विकास तो जरुर करें मगर इन मासूम बच्चो की जिन्दगी की भी सुध लें क्यूंकि विकास जिन्दगी के लिए है और इन नन्हें बच्चो की जिन्दगी विकास से कहीं बढ़कर है ....................

2 comments:

Prabin Barot said...
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Prabin Barot said...

vivek ji
aacha laga ki aapne in baccho ki fir se chinta ki, lekin muje afsos hai ki aap ko un NGO ke naam pata hone ke bavajud aap ne un ko nanga nahi kiya..kher vo aap ka masla hai lakin kiya hota to aacha rehta...
prabinavalamb Barot