Friday, May 2, 2008

आरक्षण का राक्षस समाज को भस्म कर जायेगा ??????

आजाद भारत के बुद्धजीवियों को यूँ लगा था की जातिवाद का दीमक हमारे समाज को खोखला कर रहा है और यह उस समय के हिसाब से ठीक भी था,और इसलिए कई पिछडी जातियों को नौकरी और शिक्षा मैं आरक्षण की सुविधा दी गयी और सामाजिक न्याय का नारा बुलंद हुआ ,,तब से लेकर आज ६ दशक बीत गए हिंदुस्तान की तस्वीर बदल गयी मगर जिन लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान लाया गया था न तो उनकी तक़दीर बदली न उनकी किस्मत की स्याह तस्वीर, फायदा हुआ जरुर मगर सिर्फ उनलोगों को जिन्होंने सामाजिक न्याय का नारा बुलंद किया था,दलित राजनीती के प्रतिनिधि अब सत्ता का स्वाद चख चुके हैं, दलित अब एक इंसान के बजाय महज एक वोट बैंक बन कर रह गया है , आखिर सत्ता के गलियारों में राजनीती राजनेताओं के जरुरत के हिसाब से तय होती है ,,,आज होड़ इस बात की लगती है की दलितों का मसीहा कौन ,बाबा भीमराव अम्बेडकर का वारिस कौन ,, सामाजिक न्याय का जब नारा बुलंद हुआ था तब यह एक आन्दोलन था मगर इसे नया रूप दिया पूर्व प्रधानमंत्री व.प्र.सिंह ने जब मंडल आयोग की सिफारिश लागु की गयी और उन्होने कोई कसर नहीं छोडी इसका राजनेतिक फयेदा उठाने मैं ,,मगर उसके बाद आजाद भारत के युवा दिलों मैं जातिवाद की भावना सुलग पड़ी और उस आग मैं अब तक न जाने कितने होनहार बच्चों सुलग गए मगर राजनेताओं की चमडी और भी मोटी होती गयी और अगडे और पिछडों के मन में दूरियां बढ़ती गयीं ,,मायावती सरीखे मुख्यमंत्री दलित राजनीती की ही देन हैं ,,जो प्रतिनिधि तो हैं समाज के सबसे पिछडे तबके की मगर उन्हें अपने आप को सोने से तुलवाने का बहुत शोख हे ,,उनके महलों की दीवारों की चकाचोंध उन्हें यह एहसास ही नहीं दिलाती की वो सामाजिक न्याय के आन्दोलन को चला रही हैं ,,आरक्षण के कारन कई लोगों को फायदा हुआ हे जैसे मेरे घर के बगल में एक मीना जी रहतें हैं आरक्षण के वरदान के कारन अधिकारी तक की पदुन्नती पाकर निवृत हुए ,उनके बड़े लड़के को कस्टम विभाग मैं अधिकारी की नौकरी मिल गयी और आज वो भी मलाई काट रहा है छोटा लड़का भी नौकरी प्राप्त कर चूका हे ,,इन लोगों की खासियत बताऊँ आपको की बड़ी मुश्किल से घसीट कर अपनी पढाई पूरी कर पाए जहाँ आरक्षण के कारन उन्हें प्रवेश मिला था ,,खेर यह आदिवासी दलित परिवार अब करोड़ पति हैं ,इनसे पूछिये यह बतायेंगे आपको आरक्षण के फायेदे या फिर मायावती ,मुलायम या लालू जैसे नेता आपको दलितों के सच्चे हमदर्द नज़र आयेंगे ,,मगर आरक्षण से उस आदिवासी और दलित का अभी पाला ही नहीं पड़ा जिसके लिए यह सब माथापची की गयी ,,वो आज भी दो वक़्त की रोटी जुटाने की जुगत मैं लगा है ,,,,,मैं एक राजपूत माध्यम वर्र्गीय परिवार से हूँ मैंने अपने परिवार के कई बच्चों के मुंह से सुना क्यूँ उन्हें प्राथमिकता दी जाती है जिनके सिर्फ ३९ प्रतिशत हैं उनके मुकाबले जब वो ८५ प्रतिशत से ज्यादा नंबर लेकर परीक्षा मैं उत्तीर्ण होते हैं ,,यह सब इसलिए क्यूंकि उनके भविष्य मैं अगर कोई सबसे बड़ा बाधक है तो वो है जातीयता ,,और एही भावना उनके मन को और कुंठित करती है और इस से जातिवाद का दानव और विकराल रूप धारण करता जा रहा है ,,,,

3 comments:

आलोक said...

आपका कहना तो सही है, पर इस ताश के खेल में जो पत्ते बँटे हैं उन्हीं के साथ खेलना और जीतना होता है। हुनर वाले खिलाड़ी जीतते ही हैं, वह भी खेल के नियमों के दायरों में रहते हुए। अपने परिवार के बच्चों को प्रेरि करें, वे हतोत्साहित न हों।

आलोक said...

राजनीती -> राजनीति

विवेक सिंह said...

अलोक जी मेरा मकसद सिर्फ मेरे परिवार तक सीमित नहीं बल्कि में यह कहना चाहता हूँ कब तक अपाहिज लोगों को उठाकर दोड की प्रथम पंक्ति मैं बिठा दिया जायेगा ??क्या इससे सामाजिक न्याय की जिम्मेदारी का निर्वाह हो जाता हे ??क्यूँ हम उन लोगों को इस काबिल नहीं बनाते की वो सभी के साथ सामान्य कक्षा के नागरिक बन सके ??उन्हें बेसाखी की आदत क्यूँ डाली जाती हे ?? जब किसी आरक्षित सीट पर मेडिकल मैं ३५ प्रतिशत वाले विद्यार्थी को प्रवेश मिल जाता हे ,और वोहीं ९० प्रतिशत पाकर भी सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश के लिए ठोकरें खानी पड़ती हैं ,तब उसके भीतर जातिवाद को लेकर कितना जहर भर जाता हे इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं ????क्या इससे हम जातिवाद के दानव को और विकराल नहीं बना रहे ???